बेमेतरा : छत्तीसगढ़ की देशी प्रजाति की कोसली गाय का गोमूत्र दूध के दाम पर बिकेगा। जापान की जैविक खाद व कीटनाशक कंपनी टाउ एग्रो ने बेमेतरा के नवागढ़ गांव के युवा किसान किशोर राजपूत से 50 रुपये लीटर की दर पर एक लाख लीटर गोमूत्र खरीदने का सौदा किया है। जापानी कंपनी ने राजपूत को एक लाख रुपये अग्रिम भुगतान भी कर दिया है। पहले चरण में कंपनी यहां से 20 हजार लीटर गोमूत्र ले जाएगी। किशोर राजपूत ने गोमूत्र का संग्रहण आरंभ कर दिया है। गांव व आसपास के अन्य किसानों से भी वह गोमूत्र एकत्र करेंगे। ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ सरकार भी यहां गोमूत्र की खरीदी कर रही है। गोमूत्र का सरकारी दाम चार रुपये प्रति लीटर है।
संग्रहण में रखनी होगी सावधानी : युवा किसान किशोर राजपूत ने बताया कि कोसली गाय का गोमूत्र के संग्रहण में बहुत सावधानी रखनी होगी। जापानी कंपनी गौ मूत्र ऐसी गाय का लेगी जो पूरी तरह स्वस्थ व प्राकृतिक वातावरण में स्वतंत्र विचरण करने वाली हो। जंगल में विचरण करने वाली गाय मिल जाए तो और अच्छा रहेगा।
कोसली नस्ल गाय की विशेषता : छत्तीसगढ़ राज्य की कोसली नस्ल की गाय विशेष रूप से छोटे कद काठी की होती है। इस नस्ल की गायें छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों रायपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, बेमेतरा व बिलासपुर जिलों में पाई जाती हैं। कृषि महाविद्यालय बिलासपुर के मृदा रोग विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक डा.पीके केसरी के अनुसार कोसली गाय के मूत्र में यूरिया, खनिज लवण, एंजाइम व फसलों के लिए उपयोगी अन्य तत्वों की अधिकता होती है। खेतों में इसका छिड़काव कर कीट नियंत्रण किया जाता है। यह मृदा स्वास्थ्य सुधारक व अनाज में पोषक तत्वों की वृद्धि में भी उपयोगी है।
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ऐसे होगी गौ मूत्र गुणवत्ता की जांच : गोमूत्र की शुद्धता की जांच के लिए यूरोमीटर की सहायता ली जाती है। दुर्ग स्थित दाऊ वासुदेव चंद्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक डॉ. पीएल चौधरी ने बताया कि गोमूत्र का पीएच मान 7.5 से 9 तक होता है। इसकी स्पेसिफिक ग्रेविटी 1.004 से 1.015 के बीच होती है। एक ही प्रजाति की गाय के शुद्ध गोमूत्र का पीएच मान नौ से कम होता है। इसी से गोमूत्र की शुद्धता का पता किया जाता है। यह नस्ल मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में देखी जाती है और प्रजनन पथ में रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर और जांजगीर जिले शामिल हैं। इस क्षेत्र का प्राचीन नाम ‘कौशल’ था। विशेष रूप से यादव/राउत समुदाय के किसान इस नस्ल के गायों को पीढ़ी दर पीढ़ी पाल रहे हैं। इन्हें मुख्य रूप से दूध, दही, महि, घी और खेतों के लिए खाद, कीट नियंत्रण के लिए पाला जाता है।