छत्तीसगढ़ के पूर्वी भाग में सारंगढ़ स्थित है, इसके उत्तर में महानदी और चंद्रपुर जमीदारी, दक्षिण में फुलझर जमीदारी, पूर्व में संबलपुर जिला और पश्चिम में भटगांव और बिलाईगढ़ जमीदारिया से घिरा हुआ है। सारंग का अर्थ है बांस और गढ़ का अर्थ है किला अर्थात बांस की अधिकता के चलते क्षेत्र का नामकरण सारंगढ हुआ है। प्रारम्भ से ही राजतंत्र और सामन्तशाही की पोषक छत्तीसगढ़ अंचल में स्थित चौदह देशी (सामंती) रियासतों में सारंगढ़ रियासत एक थी। प्रारम्भ में सारंगढ़ रियासत हैहयवंशी कलचुरी शासकों के अधीनस्थ थी, ततपश्चात सारंगढ़ का क्षेत्र सम्बलपुर अठारह गढ़जात में शामिल कर लिया गया। अंचल में 18 वी शताब्दी में मराठा सत्ता स्थापना के चलते सारंगढ़ रियासत मराठा नियंत्रणाधीन हो गई। जिस समय छत्तीसगढ़ में मराठों का बर्बरतापूर्ण शासन कायम था, उन्ही दिनों ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की सत्ता बंगाल, बिहार, उड़ीसा में तीव्रता से फैल रही थी। शीघ्र ही उसका प्रसार छत्तीसगढ़ में होने लगा परिणामस्वरूप छत्तीसगढ़ सहित सारंगढ़ रियासत पर मराठो का नियंत्रण समाप्त हो गया। सन 1818 में सारंगढ रियासत ब्रिटिश नियंत्रण एवं प्रभाव के अंतर्गत आ गया जो भारत की आजादी तक बना रहा पश्चात सारंगढ रियासत का भारतीय संघ में विलय हुआ।
सारंगढ के संस्थापक शासक दीवान जगदेव साय जो कि 12 वी शताब्दी में हुए थे, उनकी राजधानी गाटाडीह जो कि वर्तमान सारंगढ नगर से 10 किलोमीटर दूर थी। पश्चात नन्दनसाय, प्रताप सिंह, उजिआरसाय, बरबट साय, भिखराय, दलसाय, वीरभान साय, उदोत साय आदि राजाओं की उपाधि दीवान थी। पश्चात कल्याण साय से राजा उपाधि मिलती है, राजा विश्वनाथ साय, राजा सुभद्रसाय, राजा भीखम साय, राजा टीकम साय, राजा गजराज सिंह हुए। सन 1857 की क्रांति के समय राजा संग्राम सिंह अंग्रेजों के पक्ष में थे पश्चात राजा भवानी प्रताप सिंह, राजा रघुबर सिंह शासक हुए। अंतिम दो शासक राजा जवाहिर सिंह और राजा नरेशचंद्र सिंह प्रसिद्ध हुए। राजा जवाहिर सिंह ने सन 1924 में सारंगढ के राजमहल गिरी विलास पैलेस का निर्माण करवाया। अंतिम शासक राजा नरेशचंद्र सिंह के शासन में सन 1948 में सारंगढ का भारतीय संघ मे विलीनीकरण हुआ। राजा नरेशचंद्र सिंह लंबे समय तक मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल में आदिम जाति कल्याण मंत्री रहे साथ ही कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री भी रहे।
सारंगढ क्षेत्र की अपनी भौगोलिक विशेषता और ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत रही है। लम्बे समय से वहाँ के निवासियों की मांग सारंगढ़ को एक पृथक जिला बनाए जाने की रही है , आज 15 अगस्त 2021 को माननीय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी द्वारा सारंगढ – बिलाईगढ़ को संयुक्त जिला निर्माण की घोषणा की गई है।
सहायक प्राध्यापक डॉ. ऋषिराज पांडेय ने बताया कि सारंगढ के इतिहास को सिलसिलेवार ढंग से लिपिबद्ध करने का सौभाग्य उन्हें विधाता ने प्रदान किया, जिसके चलते उनका गौरवपूर्ण इतिहास और उसके महत्व से शासन प्रशासन सहित जनमानस परिचित हो पाया तथा आज जिला के रूप में उसके पृथक अस्तित्व प्रदान किए जाने पर उनका श्रम सफल रहा तथा सारंगढ निवासियों की भावनाओं का सम्मान हो पाया जिसके लिए छत्तीसगढ़ शासन को उन्होंने साधुवाद दिया।