रथयात्रा विशेष : आज भक्तों को दर्शन देंगे जगत के नाथ…रथयात्रा पर जाने पवनी के मंदिर का इतिहास…
बिलाईगढ़ : वर्षों की आस्था और भक्ति की धारा, आज फिर पवनी की ऐतिहासिक रथयात्रा निकलेगी। 1934 में ठंडारामजी साहू (मोकरदम) और गाँव के सहयोग से निर्मित मंदिर के गर्भगृह भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने भक्तो को दर्शन देंगें। यह यात्रा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि ग्रामीण प्रेम, सांस्कृतिक विरासत, आत्मीयता और सामूहिक श्रद्धा की पुष्टि करती है।
मंदिर निर्माण-श्रद्धा और समुदाय की प्रेरक मिसाल : ठंडारामजी साहू (मोकरदम) और गाँव के ग्रामीणों ने 1934 में निरंतर श्रम, आर्थिक सहयोग और भक्ति से इस मंदिर का निर्माण शुरू किया। स्थानीय बांस-ईट व पत्थर सामग्री के अलावा, श्रमदान, छोटी-छोटी दानराशियों की साझा शक्ति ने इसे संभव बनाया। आज भी यह मंदिर पवनी का धार्मिक केंद्र माना जाता है, खासकर आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकली रथयात्रा के दौरान।
परंपरा की शुरुआत : 1934 में मंदिर निर्मित और पहली बार रथयात्रा की शुरूवात हुई। हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा की मूर्तियाँ रथों पर विराजमान की जाती हैं। मंदिर से नृत्य-गीत, भजन-कीर्तन और पुष्प वर्षा के बीच लगभग 3–4 किमी का मार्ग तय करके निकाली जाती है।
आज के उत्सव की तैयारी 15 दिन पहले से रथ की मरम्मत, रंगाई, फूल-झंडों से सजावट और साधन सामग्री जुटाई जाती है। लकड़ी, कपड़े, सजावटी ढोलक व झांकी की सुंदर रचना होती है। वही आज के दिन “जय जगन्नाथ” की गूँज के साथ स्थल-स्थल फूलवर्षा, भजन-कीर्तन, झांकियों, नृत्य, देशी वाद्य व्यवस्था, प्रसाद वितरण की व्यवस्था की होती है। पवनी की ये गतिविधियां स्थानीय संस्कृति की विविधता का साक्षी हैं। इस दौरान रथ मंदिर से निकलकर मुख्य मार्गों से होकर कुआं चौक, बाड़ा चौक, वीडियो चौक, बस स्टैंड, बाजार चौक, बजरंग चौक, आजाद चौक, संतोष चौक, यादव चौक, राम गुड़ी चौक होते हुए पुनः मंदिर में लौटता है। साधारणतः 3–4 घंटे में पूरा रास्ता तय होता है और पूजा-अर्चना के बाद मूर्तियों को समलाई माता मंदिर के बगल कक्ष में विराजित किया जाता है। अगले दस दिनों तक इन्हें यही रखा जाता है।
आध्यात्मिक महत्त्व : रथ की रस्सी को अपनाते ही भक्तों को जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। यात्रा में शामिल होना, पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और प्रसाद-प्रदान यह सब धर्म-संस्कृति कुल को जोड़े रखते हैं। यह यात्रा न केवल आस्था की पुकार है, बल्कि साथ, सहयोग, समरसता व सामाजिक सौहार्द का प्रतिबिंब है।
आज जब पवनी का निर्मित मंदिर पुनः 91 वां रथयात्रा समारोह मनाएगा, तो 28 जून तक इसका प्रभाव पूरे क्षेत्र में फैलेगा। यह यात्रा आत्मा को जोड़ती रही है, सदियों से चली आ रही संस्कारों की शृंखला को कायम रखती है। यह पर्व न केवल भगवान जगन्नाथ की आराधना है, बल्कि भक्तों की संकल्प-शक्ति और एकता का अनुपम उदाहरण है।
जय जगन्नाथ
टीम घटनामंचन…